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कृष्ण जन्माष्टमी वर्ष 2021 मे कब है? कृष्ण जन्माष्टमी पूजा विधि, कृष्ण जन्माष्टमी भोग कैसे बनाये?

प्रति वर्ष जन्माष्टमी का पावन पर्व अगस्त, सितंबर के महीने मे ही आता है, और प्रत्येक वर्ष की भाँति इस वर्ष भी जन्माष्टमी का उत्सव बहुत ही धूम धाम से मनाया जाने वाला है। आपके बता दे इस बार श्री कृष्णा जन्माष्टमी का त्यौहार 30 अगस्त 2021 को मनाया जायेगा। इस दिन भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ था और प्रत्येक वर्ष यह त्यौहार हर्ष उल्लास मनाया जाता है। यदि बात की जाये दही हांड़ी के कार्यक्रम तिथि 29, 30 अगस्त निर्धारित हुई है। दही हांड़ी को गोकुल अष्टमी भी कहा जाता है।

कृष्ण जन्माष्टमी, मुख्यतया जन्माष्टमी के नाम से प्रसिद्ध है, जन्माष्टमी भारतवर्ष में ही नहीं अपितु समस्त संसार में प्रख्यात है। हिन्दू धर्म में इस पर्व को बहुत ही पवित्र माना जाता है, क्योकि इसी दिन भगवान विष्णु के अवतार कृष्णा का जन्म हुआ। इस दिन भक्तगण भगवान श्री कृष्ण की उपासना करते है। श्री कृष्ण जन्माष्टमी के दिन संपूर्ण भारत में ही नहीं अपितु संसार में सभी जगह जन्माष्टमी का पावन पर्व बहुत ही उत्साह के साथ मनाई जाता है। 

श्री कृष्ण जन्माष्टमी कब मनाई जाती हैं?

जन्माष्टमी हिन्दू कैलेंडर के अनुसार श्रावण मास की पुर्णिमा के बाद आठवे दिन मनाई जाती है, हिन्दू धर्म में हिन्दू पर्व रक्षाबंधन से ठीक आठवे दिन कृष्ण जन्माष्टमी का शुभ दिन आता है। 

भगवान् श्री कृष्ण का जन्म मथुरा में एक कारागार में हुआ और उन्हें जन्म देने वाली माँ देवकी के आठवे पुत्र थे। परंतु श्री कृष्ण के जन्म के तुरंत बाद वासुदेव जी उन्हे कंस से सुरक्षित रखने के लिए अपने मित्र नन्द बाबा के घर छोड़ आये थे। इसलिए श्री कृष्ण का लालन पोषण नन्द बाबा तथा यशोदा मैया ने किया। उनका सारा बचपन गोकुल मे बीता। उन्होने अपनी बचपन की मनमोहनी लीलाए गोकुल मे ही रचाई तथा बड़े होकर अपने मामा कंस का वध भी किया।

श्री कृष्ण जन्माष्टमी को कई नामो से जाना जाता है जैसे - अष्टमी रोहिणी, श्री जयंती, कृष्ण जयंती, रोहिणी अष्टमी, कृष्णाष्टमी, गोकुलाष्टमी

कृष्ण जन्माष्टमी पूजा विधि कैसे करे?

कृष्ण जन्माष्टमी पूजा विधि:

1. भारत में श्री कृष्ण जन्माष्टमी को रात्री 12 बजे मनाया जाता है इसके पीछे का मुख्य कारण ये है, श्री कृष्ण का जन्म रात्रि 12 बजे हुआ था जिस कारण आज भी श्री कृष्ण जन्माष्टमी को रात्री 12 बजे मनाया जाता है।

2. हर साल भादव मास की अष्टमी के दिन रात्रि मे 12 बजे हर मंदिर तथा घरो मे प्रतीक के रूप मे लोग श्री कृष्ण का जन्म करते है। प्रत्येक वर्ष भाद्रपद मास की अष्टमी के दिन रात्रि 12 बजे भारत के प्रयेक मंदिर और घर में लोग श्री कृष्ण का जन्म उत्सव मनाते है और ये भगवान् से ये कामना करते है कि हे ईश्वर हमारे जीवन के दुःख और दरिद्रता का नास करें और अपना आशीर्वाद प्रदान करें।

3. भक्तगण नन्हे कृष्ण की मूर्ति पर दूध, दही और सुध जल से अभिषेक करते है और तत्पश्चात पंजीरी, मिश्री, खीरा और ककड़ी का भोग लगाते है और कृष्ण जी को सबसे ज्यादा पसंदीदा माखन, माखन श्री कृष्ण को अति प्रिय है उसका भोग अवश्य लगाना चाहिए। इसके उपरांत श्री कृष्णा जी आरती की जाती है, मथुरा और वृन्दावन में तो पुरे महीने बहुत ही मनमोहने वाली लीलाओ का प्रदर्शन होता है और पूरी भारत में लोग रात भर भजन-कीर्तन करते है और कृष्णा भक्ति में डूबे नजर आते है।  

4. देश के भिन्न-भिन्न हिस्सों में इस दिन मटकी फोड़ प्रतियोगिता होती है, जिसमे एक मटकी में माखन मिश्री भरकर एक ऊंचे स्थान पर बांध दी जाती है और इस मटकी को फोड़ने के लिए काफी मंडलीया प्रतिभाग करती है और मटकी को तोड़कर कृष्ण जन्म उत्सव मनाती है। चूँकि माखन और मिश्री भगवन श्री कृष्ण को अति प्रिय था, जिसके लिए वो मटकी फोड़कर माखन चुरा कर खाते थे, माखन के लिए वो कुछ भी कर सकते थे, इसीलिए उन्हें माखन चोर भी कहा जाता है।    

5. भक्तगण इस दिन उपवास रखते है यहाँ तक कि कुछ लोग तो निर्जल उपवास रखते है और जब भगवन कृष्णा का जनम होता है और समय अपना उपवास जल ग्रहण करके तोड़ते है। हालांकी कुछ लोग फलाहार लेकर भी उपवास  रखना पसंद करते है। प्रतियेक भक्त अपनी भक्ति के अनुशार उपवास  धारण करता है ताकि वो भगवान श्री कृष्ण का आशीर्वाद प्राप्त कर सके। 

भगवान् श्री कृष्ण को इस जन्माष्टमी भोग कैसे बनाये?

भगवान् श्री कृष्ण जी को भोग के रूप में पंचामृत, पंजरी, माखन मिश्री, खीरा ककड़ी का भोग लगाया जाता है तुलसी पत्र बिना ये भोग भगवान् श्री कृष्ण को कभी  स्वीकार नहीं करते अतः जब भी आप भगवान् श्री कृष्ण जी को भोग लगाए, उसमे तुलसी पत्र अवश्य डाले। भोग मे बने पंचामृत मे दूध, दही, शक्कर, घी तथा शहद मिला रहता है तथा भोग लगते वक़्त इसमे तुलसी पत्र मिलाये जाते है।


श्री कृष्ण जी को जो पंजीरी भोग मे लगाई जाती है वह भी साधारण पंजरी से अलग होती है। वैसे तो पंजीरी आटे की बनती है, परंतु जो पंजरी कृष्ण जी को अर्पित करते है, उसे धनिये से बनाया जाता है पंजीरी बनाने के लिए पिसे हुये धनिये को थोड़ा सा घी डालकर सेका जाता है और इसमे पिसी शक्कर मिलाई जाती है. लोग इसमे अपनी इच्छा अनुसार सूखे मेवे मिलाते है, कुछ लोग इसमे सोठ भी डालते है और फिर श्री कृष्ण को भोग लगाते है

आइये अब आपको बताते है भारत मे जन्म अष्टमी का उत्सव कैसे मनाया जाता है?

वैसे तो पूरे भारत मे श्री कृष्ण जन्म उत्सव बहुत ही धूम धाम से मनाया जाता है, परंतु गोकुल, मथुरा, वृन्दावन श्री कृष्ण की लीलाओ के प्रमुख स्थान थे। इसलिए यहा पर इस दिन का उल्लास देखने लायक होता है। मंदिरो मे पूजा अर्चना, मंत्रो उच्चार, भजन कीर्तन किए जाते है। इस दिन मंदिरो की साज सज्जा भी देखने लायक होती है श्री कृष्ण के भक्त भी यही चाहते है, इस दिन कान्हा के दर्शन इन जगहो पर हो जाये

महाराष्ट्र के मुंबई तथा पुणे जन्माष्टमी पर अपने विशेष दही हांडी उत्सव को लेकर मशहूर है, तथा यहा इस दिन होने वाली दही हांडी प्रतियोगिता मे दी गयी इनाम की राशी आकर्षण का केंद्र है। यह ईनाम की राशि ही है, जिसके कारण यहा पर दूर दूर से आई मंडलियों का उत्साह देखते ही बनता है. यहा पर बंधी दही की हांडी को फोड़ने के लिए मंडलीया कई दिनो से तैयारियो मे जुट जाती है, तथा कई लड़को का समूह इस दिन एक के उप्पर एक चढकर इसे फोड़ने का प्रयास करता है, तथा जो लड़का सबसे उप्पर होता है तथा दही की हांडी को फोड़ता है उसे गोविंदा कहकर पुकारा जाता है. जैसे ही गोविंदा दही हांडी फोड़ता है, उसमे भरा माखन सारी मंडली पर गिरता है और उस जगह एक अलग ही माहोल बन जाता है

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